History/City Profile

फलोदी शहर का परिचय एवं इतिहास

    श्री सम्पन्न लक्ष्मी पुत्रों की यह नगरी पराम्बा भगवती माॅ लटियाल की तीलास्थली पुष्करणा ब्राह्मणों का यह पावन धाम राजस्थान प्रदेष के पष्चिमी भाग में जोधपुर जिले के अन्तर्गत उपखण्ड मुख्यालय है, जो 27.09. अक्षांस तथा 72.22 देषान्तर पर है ।  चार जिला मख् यालयों के मध्य में यह अपनी महत्वपूर्ण स्थिति रखता है । यहां से जोधपुर 148 किलोमीटर बीकानेर 165 किलोमीटर, जैसलमेर 155 किलोमीटर और नागौर 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।  यातायात साधनों के दृष्टिकोण से यह नगर रेल एवं बस द्वारा जुड़ा है जो जोधपुर-जैसलमेर एवं बीकानेर रेल पथ का प्रमुख रेल्वे स्टेषन है जिसकी स्थापना 14 अगस्त 1914 को हुई । सड़क मार्ग से राष्ट्रीय राजपथ सं. 15 दिल्ली - जैसलमेर, जयपुर- जैसलमेर, नागौर-जैसलमेर से जुड़ा है ।  

        इस नगर के लोगों की मुख्य आजीविका व्यापार है जो कलकत्ता, मुम्बई, चैन्नई, आसाम, अहमदाबाद, सूरत, पूना और हैदराबाद तथा नागपुर प्रभृति देष के प्रमुख व्यावसायिक केन्द्रों पर है ।  भारत की प्रमुख नमक की मण्डी होने का सौभाग्य भी इसे प्राप्त है ।  इस दषक में नलकूपों का जाल बिछ जाने और इन्दिरा गाॅधी नहर के जलावतरण के पष्चात् अब प्रमुख कृषि जन्य उपज का केन्द्र भी बन गया है ।  

        ऐतिहासिक दृष्टि से इस नगर का दुर्ग एक प्रागैतिहासिक दुर्ग है जो पृथ्वीराज चैहान के समय उसके सामन्त कतिया पंवार के अधीन रहा उस समय नगर का नाम विजय नगर था तथा पृथ्वी राज चैहान की सीमा चैकी के रूप में एक के रूप में प्रयुक्त होता था ।  पृथ्वीराज के पराभव के पष्चात बाह्य आक्रमणों और यवन आततायियों के आक्रमण और लूट खसोट से इस दुर्ग के उजड़ जाने के कारण समय के थपेडों ने इसको क्षत विक्षत कर दिया होगा नष्ट प्राय कर दिया होगा ।

    आसनी कोट (लुद्रवा) से श्री सिद्धूजी कल्ला (लुद्र) वहां के शासक के अत्याचारों से व्यथित होकर अपने साथियों सहयोगियों और अन्यत्र बसने की इच्छा रखने वाले लोगों का 40 बैलगाड़ियों का काफिला लेकर इस तरफ रवाना हुए ।  उन्होंने एक बैलगाड़ी जिसे रथ कहा जाता था माॅ लटियाल की मूर्ति स्थापित की और यह संकल्प लिया कि जहां भी पराम्बा भगवती माॅ लटियाल का रथ रूक जाएगा वहीं पर सभी लोग निवास बनाकर रहेंगे ।  आष्विन शुक्ला अष्टमी सम्वत् 1515 (सन् 1458) के दिन माॅ लटियाल का रथ खेजडी के पेड़ में धुरी अटक जाने से रूका और खेजड़ी दो फाड़ होकर गिर पड़ी फलतः सिद्धूजी ने इसी स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया जहां वह दो फाड़ खेजड़ी आज भी हरी-भरी स्थित है तथा 140 बैलगाड़ियों में आए परिवारों के लिए सिद्धूजी की ढाणी के नाम से आवास बनवाए और फला नाम की महिला के धन से फलां नाम की पानी की बेरी बनवाई जिसका मधुर जल सबकी जलापूर्ति करता था ।  इस प्रकार सिद्धजी के सहयोगियों ने इस ढाणी को एक नगर के रूप में विकसित करना प्रारम्भ किया ।  वाणिज्य व्यापार का सिलसिला शुरू हुआ जोधपुर नरेष राव जोधाजी को इस नगर की भनक मिली उन्होंने अपने पुत्र राव सूजा को ढाणी बसने के दो वर्ष पष्चात् फलोदी का शासक बनाकर सन् 1460 में फलोदी भेजा उस समय न तो निवास योग्य और न सुरक्षा के दृष्टिकोण से उपयुक्त दुर्ग था, अतः राव सूजा ने सिद्धूजी का सहयोग लेकर सम्वत् 1526 वैसाख सुदी तीज (सन् 1469) में किले की नींव रखी और फला द्वारा धन देने के कारण इस ढाणी का नाम ‘‘फलाधी‘‘ रखा जो कालान्तर मे फलोदी के नाम से विख्यात हुआ ।  

    इसके एक वर्ष पष्चात् राव जोधा ने राव नरा को फलोदी का शासक नियुक्त किया सन् 1470 ई. में उसने किले का मुख्यद्वार बनवाया और श्री बख्शीरामजी जोषी के पौरोहित्य में सन् 1478 में इस द्वार की प्रतिष्ठा करवाई ।  राव नरा का मन फलोदी में अधिक नहीं रमा और सन् 1493 में उसे राव सूजा द्वारा पोकरण का शासक भी बना दिया गया । सन् 1495 में राव नरा बाहड़मेर वालों से साथ नानणिवाई स्थान पर युद्ध करते मारा गया और राव सूजा द्वारा राव हमीर को फलोदी का शासक नियुक्ति किया गया । 

    राव हमीर के शासनकाल 1495 से 1532 अर्थात् 37 वर्ष तक को फलोदी के विकास का ‘‘स्वर्णयुग‘‘ कहा जा सकता है क्योंकि इसी राजा के कार्यकाल में जनमंगल की कामना से विकास कार्य हुए ।  इनके समय में किले का लोहा द्वार पोकरण और फलोदी की हदबन्दी सीमा निर्धारण राजदादी लखानीजी (राव सूजा की पत्नी) द्वारा पोकरण और फलोदी से एक साथ आमने सामने घोड़े दौड़ाए गए जहां दोनों घोड़ों के कंधे एक दूसरे भिड़ गए उस स्थान को घोड़ाकंधी नाम देकर सीमास्तम्भ लगाया गया ।

    इस शासक ने अपने शासन काल में अपना सम्पूर्ण जीवन इसके गौरवमय अतीत को संवारने में परम्पराओं को जन्म देने में स्नेह सौहार्द्र एवम् अपनत्व के व्यवहार से लोगों के दिलों पर राज्य स्थपित करने में लगाया जो आज भी दृष्टव्य है । 

    आपके निर्देषन में श्री सेउजी कपटा ने सेउसर तालाब का निर्माण कराया तथा सिद्धूजी कल्ला और महिमामयी नारी फला द्वारा स्थापित पुरूषोचित और नार्योचित रीति रिवाजों और परम्परा को परवान चढ़ाया जो आज भी इस नगर की सांस्कृतिक विरासत के रूप में सर्वमान्य है ।  

    किले की मरम्मत रख-रखाव मुख्य पोल, उपरी मंजिल की मरम्मत व उस पर भव्य राज प्रासाद का निर्माण कराया नगर से 10 किलोमीटर की दूरी पर रावरा तालाब खुदवाया व उस पर कीर्तिस्तम्भ लगवाया जो आज भी विद्यमान है ।  फलोदी में भी इनके शासन काल में राणीसर तालाब का निर्माण हुआ ।  यह कैसा संयोग है कि तालाब निर्माण के वर्ष ही उनका स्वर्गवास हो गया इनकी मृत्यु के पष्चात् राव मालदेव ने इनके पुत्र रामसिंह को यहां का शासक बनाया 12 वर्ष तक शासन करते हुए रामसिंह ने भी रामसर तालाब का निर्माण कराया और वही संयाग कि तालाब निर्माण के दो वर्ष के बाद ही रामसिंह की मृत्यु हो गई उनके प्रधान जगहत्थ देपावत ने उन्हें धोखे से जहर दिलवा दिया ।  

    सन् 1544 राव मालदेव द्वारा रामसिंह के भाई डूंगरसीकों फलोदी का शासक नियुक्त किया लेकिन डंूगरसी द्वारा समय आने पर मालदेव के पक्ष में सेना नहीं भेजने के कारण रूष्ट मालदेव ने इन्हें होली खेलने के बहाने बुलाकर आॅखों में गुलाल डालकर कैद कर लिया छोड़ने के बदले किले की चाबियां हस्तगत कर ली और मालदेव का पुत्र उदयसिंह सन् 1562 फलोदी का शासक बना 1574 ई. में उदयसिंह से फलोदी छिन गई और जैसलमेर के रावल सुरतानसिंह हरराजोत भाटी को अकबर द्वारा जागीर के रूप में प्रदान की गई ।  सन् 1578 ई. में बीकानेर के राजा रायसिंह का इस पर अधिकार हो गया जो 37 वर्ष तक यहां काबिज रहा ।

    सन् 1615 ई. में अकबर ने जोधपुर के राजा सूरसिंह को 67500रू. में पट्टे पर दे दिया और राजा द्वारा मुहणोत जैमल को हाकिम और चैधरी सिखरा को थानेदार नियुक्त किया ।

    हाकिम बड़े दूरदर्षी और तलवार के धनी रण कौषल में निष्णात और कानून कायदों के जानकार होते थे ।  इनके समयमें बलोच पठान इक्के-दुक्के आक्रमण और लूट-खसोट की फिराक में रहते थे । सन् 1633 ई. में बलोच मुगलखान ने अचानक आक्रमण किया अचलदास सुरताणोत और भाटी सकतसिंह  ने करारा जवाब दिया मगर वे हार गए ।  जनश्रुति है कि नदी में डेरा डालने से पहिले यहां के लोगो ने भैयों की बावड़ी में हींग और सज्जीखार डाल दी जिससे पीने योग्य पानी के अभाव में बलोच यहां से चला गया ।  सन् 1637 में हाकम मुहणोंत नैणसी और रावल मनोहरदास ने बीकमपुर के भारमलसर के निकट बलोच मुगलखान को परास्त किया । सन् 1638 ई. में बलोच मदा फतेअली 750 सैनिकों के साथ चाखू घण्टियाली को लूटकर आगे बढ़ रहा था कि मुहणोत नैणसी और सुन्दरदास ने उस पर प्रत्याक्रमण कर उसे हराकर भगा दिया और फलोदी की सुदृढ़ शासन व्यवस्था हुकूमत के रूप में हो गई जो सन् 14 अगस्त 1946 तक मारवाड़ राज्य के अन्तर्गत जोधपुर राजघराने के अधीन रही । सन् 1947 से राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले की यह प्रमुख तहसील और यह नगर उसका मुख्यालय है ।

: :
Website last update: 09/08/2022 02:50:13

Visitor counter : visitor counter